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Showing posts from March, 2019

HOW TO IMPROVE SPOKEN ENGLISH YOURSELF

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Wakil Kumar Yadav B.A, M.A in English tips Read aloud. Sing along to your favorite English songs. Video Watching Don’t neglect pronunciation, especially of vowels and consonants! Correct word stress will make you sound more native and more confident. Remember those idioms!   Don’t be afraid to take on the infinite supply of phrasal verbs! Mastering collocations should be a major goal! Find out which accent you prefer and imitate it. Find and practice fixed expressions.

पर्यावरण और मानव मूल्य

पर्यावरण और मानव मूल्य                                                  वैश्वीकरण के इस दौर में पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चिंतन करना आवश्यक हो जाता हैं, वैदिक काल से भारतीय मनीषी पर्यावरण के  संदर्भ में इस तथ्य को उजागर करते रहें है कि लोक रक्षा के लिए प्रकृति की रक्षा करो, रक्षायै प्रकृति पशु लोक । यही कारण है कि वेदों में आकाश,  पाताल,नदी ,सागर, पर्वत, वनस्पति औषधि, पृथ्वी, नक्षत्र, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, नमनुष्य -देव सबके मंगल एवं संवृध्दि हेतु शांति की कामना की  गई हैं । ऋग्वेद में ऋते का अर्थ निहितार्थ ब्रह्मांड से जीवित, अनुशक्ति और व्यवस्थित माना गया हैं । शुक्रनीति कहती हैं कि नैतिक संस्थान  (ऋत) सभी का उमजीवक और लोकस्थिति का कारण । "सर्वोपजीवक लोकस्थितिकृन्यातिशास्त्र कम" । विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक का भी मन्तव्य है  कि विश्व एक महानद यंत्र है, जो गणित सूक्ष्मयान्त्रिकियों का विलक्षण सुनियोजन हैं । व्यापक रूप में ऋत का अर्थ आदर्श परिस्थितियों की समक्षता  से हैं जहाँ सभी घटक एक दूसरे का अकारक हैं । यही कारण है कि सम्पूर्ण अस्तित्व की रक्षा हेतु

आज़ादी में लैंगिक असमानता

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“परतंत्रता को नकरनेवाली भीमस्मृति और परतंत्रता का पालन करनेवाली मनुस्मृति एक ही सभागृह में और एक ही घर में साथ-साथ राज करती हैं । यानी देश एक ही समय में दो स्मृतियों, दो सत्ताओं और दो जीवन-पद्धतियों एवं अहितकारी संस्कृति व् परम्परा में जीता है।” बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की मान्यता है कि सामाजिक, सांस्कृतिक-परम्परा, आर्थिंक, राजनीतिक, शैक्षणिक इत्यादि की आज़ादी में लैंगिक असमानता अनैतिक ही नहीं बल्कि जन विकास, देश विकास और विश्व विकास की राह में पत्थर है। बाबा साहेब के कृतित्व के अनुशीलन से स्पष्ट है कि पूरे भारतीय समाज की स्त्रियाँ पितृसत्ता एवं परम्परा के बोझ नीचे कराह रही है, जबकि प्रारंभिक वैदिक काल में स्त्रियों को मानव के रूप में उतना ही गैरव प्राप्त था जितना पुरूषों ।  एस• गिडवानी ने अपनी ‘रिटर्न ऑफ़ दि एरियन्स' में लिखे है कि स्त्रियाँ यदि अग्रणी नहीं तो उन सभी महत्वपूर्णं कार्यक्षेत्रों में बराबर तो थी ही जिनमें नागरिक कार्य, राजनीति प्रशासन, काव्यशास्त्र, दर्शन, कला आदि शामिल थे। स्त्रियाँ आरक्षण के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर सिंध और भारत के प्राच
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Wakil Kumar Yadav